उत्तराखंड में शराब विरोधी आइसा आंदोलनकारियों पर मुकदमा

जब से सुप्रीम कोर्ट ने शराब की दुकानों को हाइवे से 500 मीटर दूर स्थानांतरित करने का आदेश दिया है, तब से पूरे उत्तराखण्ड में शराब विरोधी आंदोलन ने जोर पकड़ा हुआ है. लम्बे समय से महिलाओं का एक प्रमुख मुद्दा रहा है शराबबंदी, लेकिन अब तक की भाजपा-कांग्रेस की सरकारों ने जिन दुर्गम स्थानों पर पानी नहीं पहुंचता है वहां शराब की दुकानें पहुंचाने का काम बखूबी किया है.


सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद शराब विरोधी आंदोलन इतना तेज हुआ है कि कहीं भी आसानी से शराब की दुकानें आवंटित नहीं हो पा रही हैं. वहीं शराब कारोबारियों के पक्ष में बेशर्मी के साथ खड़ी भाजपा सरकार ने इसका हल निकालने के लिये ‘राष्ट्रीय राजमार्ग को राज्य मार्ग और राज्य मार्ग को जिला मार्ग का दर्जा देने’ का आदेश दे दिया है. कई जगहों में भाजपा सरकार व उसके विधायकों के संरक्षण में शराब की दुकानें हाइवे से स्थानांतरित करके अब रिहायशी इलाकों में खोली जा रही हैं. भाकपा(माले) की इकाइयों ने भी जहां सम्भव वहां इन दुकानों को खोलने के विरोध में हो रहे आंदोलनों में भागीदारी की है.


इस क्रम में भाकपा(माले) के छात्र संगठन आइसा ने श्रीनगर (गढ़वाल) में 12 जून 2017 को शराब विरोधी आंदोलन में शिरकत की. जबरन दुकान खोलने का जब विरोध किया गया तो आइसा के नेता शिवानी पाण्डेय व अतुल सती समेत 23 महिला-पुरुषों पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया. इससे पहले भी भाजपा सरकार गढ़वाल के कई इलाकों में आंदोलनकारियों पर मुकदमा दर्ज कर चुकी है.


इसके विरोध में भाकपा(माले) ने कर्णप्रयाग और लालकुआं में मुख्यमंत्री को सम्बोधित ज्ञापन सौंपा जिसमें अविलम्ब मुकदमे वापस लेने की मांग की गई. ज्ञापन के अनुसार भाजपा पहले दावा कर रही थी कि वह भी शराबबंदी के पक्ष में है, इसलिए सरकार की ओर से किसी भी आंदोलनकारी पर केस नहीं लगाया जा रहा है, पर अब सरकार असली रूप में सामने आकर हर शराब की दुकान की हिफाजत के लिए 2 पुलिसकर्मी लगाने का आदेश दे चुकी है और मुकदमे भी दर्ज हो रहे हैं. भाजपा नेता अपने निवास क्षेत्र में ही शराब की दुकानें खुलवाकर अपने ही कार्यकर्ताओं को ठेके भी दिलवा रहे हैं.