मई 2013 को पूर्णिया जिले के धमदाहा प्रखंड के कुकरहन गांव में भूमिहीन-गरीब आदिवासियों का जुल्मी भूस्वामियों के खिलाफ संचित आक्रोश फूट पड़ा. उस दिन दोपहर के आसपास जब जुल्मी मुखियापति जैनेन्द्र मंडल ने अपने हथियार बंद गिरोह के साथ गरीब-आदिवासियों पर हमला किया, तब उन्होंने उसका जोरदार प्रतिरोध किया. उन्होंने हथियारों के साथ जैनेन्द्र मंडल को पकड़ लिया, बुरी तरह पिटाई की और फिर अधमरी अवस्था में आग के हवाले कर दिया.
जैनेन्द्र मंडल ने अपने ईंट भट्ठे के लिए 23 मई को भी आदिवासियों के पुश्तैनी कब्जे की बिहार सरकार की 5 एकड़ जमीन से जबरन मिट्टी काटने का प्रयास किया था, लेकिन लोगों के तीखे प्रतिरोध के कारण उसे भागना पड़ा. अगले रोज 24 मई को दर्जनभर हथियारबंद अपराधियों के साथ वह पुनः आ धमका और आदिवासियों के विरोध करने पर अंधाधुंध फायरिंग करने लगा. लेकिन परंपरागत तीर-धनुष से आदिवासियों के जवाबी प्रतिरोध के सामने गुंडे टिक नहीं सके और भाग खड़े हुए. उपमुखिया और मुखियापति दोनों को जनता ने हथियार सहित पकड़ लिया. पिटाई के बाद उपमुखिया को तो छोड़ दिया गया, लेकिन जैनेन्द्र मंडल के अत्याचार से त्रास्त आदिवासियों ने उसे मौत की सजा दे डाली.
गरीब-आदिवासियों पर जुल्म के समय निष्क्रिय प्रशासन अचानक सक्रिय हो उठा. 100 घर वाले उरांव जाति के आदिवासी टोले पर पुलिस दमन तेज कर दिया गया. महिला-पुरूष जो भी मिले, उनकी निर्मम पिटाई की गई और 40 लोगों को जेल में बंद कर दिया गया. 40 लोगों में 21 आदिवासी महिलाएं हैं. गर्भवती गीता देवी की पुलिस पिटाई से गर्भपात हो गया. लेकिन पुलिस ने उसे भी जेल में डाल दिया. जेल में बंद 7 महिलाओं की गोद में 2 माह से सालभर के दुधमुहे बच्चे हैं और अपनी मां के साथ 2 से 4 वर्ष के 7 बच्चे भी जेल में बंद हैं. फिहलाल, 100 घरों का पूरा टोला खाली हो चुका है.
इस घटना ने नीतीश सरकार की अन्यायी-दमनकारी और गरीब विरोधी चरित्र की पुनः पुष्टि की है. भाकपा-माले की बिहार राज्य कमिटी सदस्य और पूर्व विधायक कॉ. सत्यदेव राम, खेमस राज्य सह सहिच कॉ. गोपाल रविदास, पूर्णिया के जिला नेता कॉ. जमुना मुर्मु व कॉ. इस्लामुद्दीन के घटनास्थल के दौरे, दमन के प्रतिवाद में 29 मई को जिला मुख्यालय पूर्णिया में प्रभावशाली प्रतिवाद मार्च तथा 1 जून को ऐपवा के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन के बाद पुलिस दमन थमा है. संगठन ने तमाम निर्दोष बंदियों की रिहाई, दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई, पूर्णिया के तमाम भूमि विवाद को हलकर उसे गरीबों में बांटने के लिए टास्कफोर्स के गठन तथा गांव छोड़कर भागे हुए आदिवासियों को गांव में बसाने की मांग उठाई है. भूमि विवाद व जैनेन्द्र मंडल के अत्याचार को ढकने के लिए प्रशासन व मीडिया ने एक दूसरी कहानी गढ़ने की कोशिश की लेकिन वे सफल नहीं हो सके. जैनेन्द्र मंडल ने कुकरहन की एक आदिवासी महिला से दूसरी शादी की थी और आदिवासियों ने इसकी मान्यता दे दी थी. प्रशसन ने लोगों को भ्रमित करना चाहा कि अन्तर्जातीय शादी के विरोध स्वरूप यह घटना घटी.
जुल्मी जैनेन्द्र मंडल के खिलाफ आदिवासियों के भीतर गुस्सा लंबे समय से पल रहा था. मोलचंद इस्टेट कुकरहन गांव स्थित अपनी जमीन बेचना चाहता था. मोलचंद इस्टेट का स्थानीय दलाल जैनेन्द्र मंडल ने जमीन का लालच दिखाकर आदिवासियों से करीब 8 लाख रु. लिए और गरीब आदिवासियों के बजाए खुद अपने नाम पर 17 एकड़ जमीन लिखवा ली. उसके इसके कारनामे से आक्रोशित आदिवासियों ने 2012 के मई-जून महीने में जैनेन्द्र मंडल की 17 बीघे की केले की फसल काट डाली और उसके खिलाफ संघर्ष का बिगुल फूंक दिया. जैनेन्द्र मंडल ने 70 आदिवासियों के इंदिरा आवास की 24.5 लाख राशि भी 2009-10 में यह कहकर रख ली थी कि वह सबों को ईंट आदि भवन निर्माण की सामग्री देगा लेकिन उसने अभी तक कुछ नहीं दिया था. लोग बताते हैं कि अभी तक इसने गरीबों की अनेक बहू-बेटियों की इज्जत से खिलवाड़ किया है. लेकिन भयवश इसके खिलाफ कोई मुखर विरोध नहीं हो सका. इलाके के भूस्वामियों, अपराधियों व पुलिस-प्रशासन के साथ इसके गहरे रिश्ते थे. लोग जैनेन्द्र मंडल से आजिज थे ही और जब उसने आदिवासियों की कब्जे की गैरमजरूआ जमीन भी हड़पनी चाही, तो उनका गुस्सा फूट पड़ा.
इसी गांव में मोलचंद इस्टेट की 22 एकड़ सीलिंग की जमीन का पर्चा आदिवासियों को मिला हुआ है. लेकिन इस्टेट के लोगों ने हाइकोर्ट से सीलिंग को खारिज करवा दिया. 2010 और पुनः फरवरी-मार्च 2012 में प्रशासन ने गरीबों को जमीन से बेदखल करने की नीयत से 22 एकड़ में लगी केले व मकई की फसल कटवा दी थी. 2010 में ही हमारी पार्टी ने प्रशासन का विरोध किया और गांव से संपर्क किया. 2012 की शुरूआत में गरीब हमारी पार्टी से पूरी तरह जुड़ गए. इसी के बाद गरीबों को नई ताकत मिली और उन्होंने जुल्म का विरोध करना शुरू किया. आदिवासियों के कब्जे की सीलिंग की जमीन की शिनाख्त करवाने में मोलचंद इस्टेट के दलाल जैनेन्द्र मंडल ने बढ़-चढ़कर प्रशासन की सहायता की थी. इसने गरीब आदिवासियों के दिलों में जैनेन्द्र मंडल के खिलाफ गुस्सा व घृणा भर दी. संघर्ष की बदौलत सीलिंग की जमीन अभी भी आदिवासियों के कब्जे में है. 2012 मई-जून में जैनेन्द्र की 17 एकड़ की केले की फसल काटे जाने के तुरत बाद जैनेन्द्र के सरंक्षण में रूपौली विधानसभा क्षेत्र के जद(यू) विधायक बीमा भारती का कुख्यात अपराधी पति अवधेश मंडल कुकरहन पहुंचा. उसे देखते ही गांव के आदिवासियों ने तीर-धनुष के साथ उसे घेर लिया. उनका गुस्सा देख अवधेश मंडल ने गाड़ी से उतरने की हिम्मत नहीं दिखाई और उसे उलटे पांव वहां से भागना पड़ा. अवधेश मंडल के खदेड़े जाने की खबर आग की तरह पूरे इलाके में फैल गई. इस घटना ने क्षेत्र की जनता के मनोबल को काफी बढ़ा दिया. इसके बाद ही वर्ष 2012 में पूर्णिया में सीलिंग, गैरमजरूआ सिकमी बटाई की जमीन पर झंडा गाड़ने का तूफानी सिलसिला शुरू हुआ. धीरे-धीरे यह आंदोलन पूरे जिले में फैलता गया.
पूर्णिया जिले का यह वही सामंती दबदबा वाला कुख्यात धमदाहा प्रखंड है जहां कॉ. ब्रजेश मोहन ठाकुर की सामंत सीताराम सिंह ने 15 मार्च 1986 को टुकड़ा-टुकड़ा कर हत्या कर दी थी. इसी प्रखंड के चंदवा रूपसपुर में 22 नवंबर 1971 को सामंतों ने 14 आदिवासियों को जिंदा जला दिया था. चंदवा-रूपसपुर में भी भूमि का ही संघर्ष था. इसी प्रखंड के कसमरा में 11 अगस्त 2003 को भूमि संघर्ष में ही सवर्ण सामंती ताकतों ने 3 आदिवासी गरीबों की हत्या कर दी थी. यहां गरीबों ने 6.5 घंटे तक अपराधियों का मुकाबला किया था. चंदवा रूपसपुर व कसमरा के गरीब भी संघर्ष में उठ खड़ा होने लगे हैं. वर्ष 2012 में भूमि अधिकार न्याय यात्रा के दौरान चंदवा-रूपसपुर का दौरा किया गया था. कसमरा कांड की बरसी पर 11 अगस्त 2012 को कसमरा में सभा भी की गई थी. ब्रजेश मोहन ठाकुर का हत्यारा सीताराम सिंह के मारे जाने के बाद जनता ने उसकी करीब 100 एकड़ जमीन पर कब्जा जमा लिया है तथा ककरबद्धा गांव का नाम बदलकर ब्रजेश ग्राम कर दिया गया है. 1971 में सामंतों ने आदिवासियों को जलाकर मार डाला था तो 42 वर्षों बाद कुकरहन में अत्याचारी जैनेन्द्र मंडल को गरीबों ने आग के हवाले कर दिया. कुकरहन गरीबों के संघर्ष के प्रतीक के बतौर उभरा है.
भाकपा-माले की 21 नवंबर 2011 की पटना रैली में गरीबों के जुटान ने साबित कर दिया था कि नीतीश से गरीबों का विश्वास उठने लगा है. रैली से लौटकर पूर्णिया में हमारी पार्टी ने गरीबों से कोर्ट-कचहरी का चक्कर छोड़कर सीलिंग-सरकारी व सिकमी बटाई की जमीन पर झंडा गाड़ने का आह्वान किया. पूर्णिया में डी. बंद्योपाध्याय आयोग की रिपोर्ट के अनुसार सीलिंग की 391324.92 एकड़ जमीन है. भूदान की 27639.1 एकड़ तथा सिकमी बटाईदारों की न्यूनतम 1 लाख एकड़ जमीन है. उक्त तीनों जमीन का कुल रकबा 518964.02 एकड़ होता है. इसके अलावे देहाती इलाके में बिहार सरकार की 40175 एकड़ जमीन है. इन वजहों से पूर्णिया में भूमि का सवाल सबसे ज्वलंत व गरीबों में लोकप्रिय मुद्दा है. अवधेश मंडल के खदेड़े जाने के बाद जिले में स्वतःस्फूर्त रूप से फैले भूमि दखल आंदोलन में धमदाहा के 13 बिन्दुओं पर 612.54 एकड़, बड़हरा कोठी के 6 बिन्दुओं पर 46.25 एकड़, रूपौली के 9 बिन्दुओं पर 153.79 एकड, भवानीपुर के 8 बिन्दुओं पर 92.72 एकड़ तथा बनमनखी प्रखंड के 5 बिन्दुओं पर 46.84 एकड़ जमीन पर संघर्ष चल रहा है. कुल 41 बिन्दुओं के 1052.14 एकड़ जमीन पर गरीबों का फिलहाल कब्जा है.
पूर्णिया में आदिवासियों की बड़ी संख्या है और मुसलमानों की भी. भाजपा आदिवासियों को मुसलमानों के खिलाफ खड़ा करके सांप्रदायिक माहौल खड़ा करते रहती है और उनका वोट हथिया लेती है. पूर्णिया के विधानसभा की तमाम सीटों और लोकसभा पर भाजपा-जद(यू) का ही कब्जा है. भूमि आंदोलन से बौखलाकर भाजपा-जद(यू) ने पूरे भूमि आंदोलन की दिशा बदलने तथा इसे सांप्रदायिक स्वरूप देने की गहरी चाल चली. धमदाहा से जद(यू) विधायक लेसी सिंह ने साजिशाना तरीके से कुछेक दलालों के माध्यम से मुस्लिमों की कल्याणकारी संस्था मीलिया ट्रस्ट की 100 एकड़ जमीन पर आदिवासियों को उकसाकर झंडा गड़वा दिया और इधर मुसलमानों को भी आदिवासियों को खदेड़ने के लिए उकसाया. प्रशासन ने हमारी पार्टी को इसमें घसीटकर बदनाम करने की भी कोशिश की. लेकिन साजिश सफल नहीं हो सकी. हाल ही में इन्कलाबी मुस्लिम कांप्रफेस के जरिए पूर्णिया में एक सफल सेमिनार किया गया है.
बहरहाल, नीतीश राज में दलित-आदिवासियों-महिलाओं- अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर दमन तेज हो गए हैं. 2011 के बाद एक-एक करके रणवीर सेना के जनसंहारियों को कोर्ट से बरी किया जा रहा है. बथानी के बाद नगरी जनसंहार के तमाम आरोपियों को बाइज्जत बरी किया जा चुका है. इससे पूर्व 2011 में ही नारायणपुर (जहानाबाद) एवं जाहिर बिगहा-खगड़ी बिगहा ( गया) जनसंहार के दोषियों को भी बरी कर दिया गया. बाथे जनसंहार का फैसला सुनाये जाने की प्रतीक्षा हो रही है. यहां भी अपराधियों को बरी किए जाने की आशंका की जा रही है. हाल के समय में आदिवासी गरीबों के ऊपर भी जो बिहार विभाजन के उपरांत यहां कम संख्या में रह गए हैं, अत्याचार की घटनाओं में वृद्धि हुई है. विगत 7 मई को मनरेगा मजदूरों की मजदूरी घटाए जाने के खिलाफ पटना में हुए खेमस के प्रदर्शन के बाद लौट रहे जमुई के आदिवासियों की माओवादी कहकर सीआरपीएफ ने बेवजह पिटाई की. पानी मांगने पर पेशाब पीने तथा पेशाब में सत्तू सानकर खाने को कहा. कइयों को पुलिस ने गिरफ्तार भी कर लिया जिन्हें आदिवासियों के आक्रोश को देखकर बाद में छोड़ना पड़ा. पूर्णिया की घटना सामने है. उधर पश्चिम चंपारण में वाल्मिकी व्याघ्र परियोजना के नाम से व्याघ्र संरक्षण के बहाने थारू आदिवासियों को उजाड़ने की साजिश चल रही है. गौनाहा प्रखंड के भतुजला गांव के रास्ते को बैरियर लगाकर पूरी तरह बंद कर दिया गया है, तो ऐतिहासिक गांव भिखना ठोरी के रास्ते पर भी बैरियर लगा दिया गया है, जहां पर नाम लिखवाकर ही कोई गांव में जा सकता है. शाम 6 बजे के बाद रास्ता पूरी तरह बंद कर दिया जाता है.
नीतीश सरकार के अन्याय और पुलिस दमन के खिलाफ हमारी पार्टी ने विगत वर्ष न्याय आंदोलन चलाया. 2 मई से न्याय आंदोलन का दूसरा दौर शुरू हुआ है. पूरे बिहार में तीन टीमें न्याय यात्रा कर रही हैं, जिसके दौरान वे जनसंहार पीड़ित गांवों का दौरा करेंगी और आगामी 20 जून को उक्त दमन के खिलाफ न्याय व लोकतंत्र के लिए पटना में न्याय सम्मेलन करने का फैसला किया गया है. न्याय सम्मेलन में वाम-लोकतांत्रिक ताकतों व न्यायपसंद नागरिकों की गोलबंदी होगी.