भारत में हर घंटे कम-से-कम एक किसान जरूर आत्महत्या कर रहा है (स्रोत: किसानों की आत्महत्या पर राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो का 2015 के लिये आंकड़ाद्ध.
ऽ 2014 से 2015 के बीच काश्तकार किसानों की आत्महत्याओं में 42 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. ¹2015 में कृषि क्षेत्र में आत्महत्या करने वाले कुल 12,602 लोगों में से 8007 किसान थे जबकि 4,595 कृषि मजदूर थे. 2014 में कृषि क्षेत्र में आत्महत्या करने वाले कुल 12,360 लोगों में से किसानों की तादाद 5,650 थी और कृषि मजदूरों की संख्या 6,710 थी, यानी 2014 से 2015 के बीच आत्महत्या करने वाले किसानों की तादाद में 42 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि आत्महत्या करने वाले खेत मजदूरों की संख्या में 31.5 प्रतिशत की कमी आई. कुल मिलाकर कृषि क्षेत्र में हुई आत्महत्याओं की संख्या में 2014 की तुलना में 2015 में 2 प्रतिशत की वृद्धि हुई.ह्
ऽ भारत में हर रोज 35 किसान एवं कृषि मजदूर आत्महत्या कर रहे हैं. दिवालिया होने और कर्ज का बोझ तले दबने के कारण की जाने वाली आत्महत्याओं की तादाद में 2015 में तीखी वृद्धि हुई है, जिनमें 2014 की तुलना में लगभग तीन गुना इजाफा हुआ है.
ऽ उल्लेखनीय तथ्य यह है कि किसानों द्वारा कर्जदारी के चलते की जाने वाली आत्महत्याओं में से 80 प्रतिशत मामलों में कर्ज सूदखोर-महाजनों से नहीं बल्कि बैंकों और माइक्रो-फाइनेन्स संस्थाओं से लिया गया था.
ऽ भारत में हुई किसानों की कुल आत्महत्याओं में से 91 प्रतिशत आत्महत्याएं छह राज्यों में हुई हैं - महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक.
ऽ खेती से होने वाली आमदनी कभी भी किसानों को कर्ज के फंदे से मुक्ति दिलाने में कत्तई समर्थ नहीं हो सकती. आर्थिक सर्वेक्षण (2015-16) में स्वीकार किया गया है कि खेती से औसत किसान को हासिल होने वाली औसत वार्षिक आमदनी से उसकी शुद्ध उत्पादन लागत का अंतर 20,000 रुपये से कम ही होता है. यानी एक औसत किसान को खेती से लगभग 1,600 रुपये प्रतिमाह की औसत आमदनी होती है.