मधुकर सिंह के देहावसान के दूसरे दिन 16 जुलाई को सुबह साढ़े दस बजे धरहरा से कथाकार मधुकर सिंह की अंतिम यात्रा निकली. इसके पहले पटना से माले राज्य सचिव का. कुणाल, पोलित ब्यूरो सदस्य का. अमर, राज्य स्थाई समिति के सदस्य संतोष सहर, साहित्यकार अशोक कुमार सिन्हा, शिवनारायण उनके शोक संतप्त परिजनों से मिले. कवि श्रीराम तिवारी, कहानीकार अनंत कुमार सिंह, माले नेता सुदामा प्रसाद समेत कई लोग वहां मौजूद थे. पहले माले के धरहरा ब्रांच की ओर से उनके सम्मान में पार्टी का झंडा उनके कफन में लिपटे शरीर पर रखा गया, उसके बाद अंतिम यात्रा शुरूआत हुई. धरहरा से उनका शव भाकपा(माले) के जिला कार्यालय लाया गया, जहां का. कुणाल, का. नंदकिशोर प्रसाद, का. अमर, का. संतोष सहर, का. जवाहरलाल सिंह, का. राजू यादव, जसम के राष्ट्रीय सहसचिव कवि जितेंद्र कुमार, जनमत के संपादक सुधीर सुमन समेत माले के कार्यकर्ताओं और साहित्यकार-संस्कृतिकर्मियों ने उन्हें श्रद्धांजलिदी.
श्रद्धांजलिसभा को संबोधित करते हुए माले राज्य सचिव का. कुणाल ने कहा कि मधुकर जी ने जीवनपर्यंत जनता के संघर्षों के बारे में लिखा. वे जनता के शोषण की व्यवस्था के खिलाफ थे. गरीबों-मजदूरों का राज बनाने का उनका सपना था. उनके अधूरे सपनों को आगे बढ़ाने के लिए हम संकल्पबद्ध हैं.
का. संतोष सहर ने कहा कि मधुकर जी बिहार के गौरव थे, उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार के साथ-साथ बिहार का भी सबसे बड़ा पुरस्कार मिला था. लेकिन विडंबना है कि बिहार के इस गौरव को श्रद्धांजलिदेने सरकार और प्रशासन का कोई भी प्रतिनिधि नहीं पहुंचा. सरकारें गरीबों और दलितों की तो उपेक्षा करती ही हैं, बिहार सरकार ने गरीबों और दलितों के लिए आजीवन लिखने वाले साहित्यकार की भी उपेक्षा का नमूना पेश किया है - सरकार ने उनका कायदे से इलाज नहीं कराया और न ही कोई बड़ी सरकारी मदद दी. पिछले साल जसम और भोजपुर के नागरिकों ने न केवल उन्हें सम्मानित किया, बल्कि उनके साहित्यिक योगदान पर एक महत्वपूर्ण आयोजन भी किया. भोजपुर की जनता ने साबित किया कि जनता का साहित्यकार किसी सरकारी मदद का मुहताज नहीं हो सकता. जनता उन्हें हमेशा अपनी स्मृतियों में रखेगी.
का. सुदामा प्रसाद ने कहा कि सामंती शोषण उत्पीड़न के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे दलितों और गरीबों की कहानियां मधुकर सिंह ने लिखी. कवि जितेंद्र कुमार ने कहा कि सत्तर के दशक में किसान-मजदूरों ने जो राजनीतिक आंदोलन शुरू किया, मधुकर सिंह ने उसके सांस्कृतिक औजारों को विकसित करने का काम किया. का. राजू यादव ने कहा कि वे जनता के संघर्षों में हमेशा जीवित रहेंगे.
जनमत संपादक सुधीर सुमन ने कहा कि भोजपुर आंदोलन के संस्थापक जगदीश मास्टर के साथ वे जैन स्कूल में शिक्षक थे. उसी दौर से उनका मास्टर जगदीश और उनके साथियों और उनकी पार्टी भाकपा(माले) से गहरा संपर्क था. नब्बे के दशक में वे माले के सदस्य बने और जीवनपर्यंत इसके सदस्य बने रहे. मधुकर सिंह जनता की राजनीति और संस्कृति के बीच गहरे रिश्ते के हिमायती थे. उन्होंने भोजपुर की गरीब-मेहनतकश जनता के सामाजिक-राजनीतिक बदलाव के संघर्ष के इतिहास को अपनी रचनाओं में दर्ज किया है.
माले कार्यालय से अंतिम यात्रा शहर के मुख्य मार्गों से गुजरते हुए सिन्हा घाट पहुंची, जहां मधुकर जी को अंतिम विदाई दी गई. अपराह्न तीन बजे उनके छोटे बेटे ज्योति कलश ने मुखाग्नि दी. इस मौके पर उनके मंझले पुत्र अजिताभ और उनके पौत्रा तथा रिश्तेदारों समेत उनके गांव के लोग भी मौजूद थे.
ऑल बिहार प्रोग्रेसिव एडवोकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष अमित कुमार बंटी ने भी मधुकर सिंह को श्रद्धांजलिदी है.