चंपारण की जमीनी हकीकत: इतिहास और वर्तमान

चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष पूरे देश में मनाया जा रहा है. आज से ठीक सौ साल पहले अंग्रेजी राज के खिलाफ चंपारण के किसानों का विद्रोह शेख गुलाब, शीतल राय जैसे क्रांतिकारी किसानों के नेतृत्व में चला था, जिसे अंग्रेजों ने स्थानीय जमींदारों के साथ मिलकर दबाने की कोशिश की थी, लेकिन किसानों का आंदोलन जारी रहा. यही आंदोलन 1917 में गांधी जी के नेतृत्व में किसानों के सत्याग्रह के रूप में सामने आया, जिसने आजादी की लड़ाई में नया आवेग लाया था. अंग्रेजों ने भारत में गांवों की स्वायत्त शासन प्रणाली व्यवस्था को तोड़कर बंगाल-बिहार-उड़ीसा में किसानों से टैक्स वसूलने के लिए स्थायी बंदोबस्ती लागू किया और जमींदारों को बहाल किया, जो उस समय के पूर्व के स्वतंत्र राज घराने और छंटे हुए बदमाश होते थे. बाद में अंग्रेज, जमींदारों से लीज पर और उनपर कर्ज के बदले मालिकाना तौर पर किसानों की जमीन लेकर नील के निजी फार्म बनाने लगे. अपने चैतरवा कोठी के फार्म में 86 किसानों की जमीन जबरन मिलाने की कार्यवाही की तरह उन्होंने सभी जगहों पर अपने नील के फार्म का विस्तार किया. ऊपर से सभी किसानों को एक बीघा खेती पर तीन कट्ठा नील की खेती करने के लिए भी बाध्य किया. उस समय अनाज की खेती कम होने से अकाल का सामना भी करना पड़ता था. उस दौर में बपही-पुतही, मोटरही, पइनखर्चा, फगुवई आदि कई तरह के टैक्स किसानों पर लादे गये. स्थानीय जमींदारों ने भी उसी अनुपात में अपना टैक्स बढ़ाया और किसानों की जमीन नीलाम करा करके अपनी जमींदारी में निजी मालिकाना वाली जमीन बढ़ाते चले गये.


सत्याग्रह के समय किसानों को यह बताया गया कि हिंदुस्तान के इस क्षेत्र में जमींदारी व्यवस्था अंग्रेजी राज में कायम हुआ है. अंग्रेजों के जाने के बाद जमींदारी व्यवस्था खत्म हो जाएगी और ग्राम स्वराज कायम होगा. इसलिए पहले अंग्रेजों से लड़ा जाए. किसान-मजदूर खूब लड़े. देश आजाद हुआ, जमींदारी का उन्मूलन हुआ. लेकिन आज तक बिहार में भूमि सुधर नहीं हो सका है. अंग्रेजी राज के जमींदारी अवशेष अभी तक बने हुए हैं. इसे डी. बंद्योपाध्याय की अध्यक्षता वाले भूमि आयोग ने भी कहा है कि ‘‘चंपारण में तो आज भी जमींदारी राज कायम है’’. जिसे हम एक तरफ विलासपुर, शिकारपुर, डुमरिया, रामनगर जैसे इस्टेटों, बड़े सामंतों और चीनी मिल मालिकों के पास हजारों-हजार एकड़ भूमि के संकेन्द्रण के रूप में तो दूसरी तरफ-रोजी-रोटी के लिए पलायन, घोर दरिद्रता और भूमिहीनता के रूप में देखते हैं.


आज चंपारण में हरिनगर चीनी मिल, गवन्द्रा और बहुअरवा फार्म सीलिंगवाद में सुप्रीम कोर्ट तक से हार चुका है. उसकी 5200 एकड़ जमीन अध्शिेष घोषित हो चुकी है. इस तरह भूमि आयोग की सिफारिश के अनुसार भूपतियों द्वारा चोरी की गयी बिहार के 21 लाख एकड़ जमीन में प. चंपारण की एक लाख सैतीस हजार एकड़ जमीन है. जिसको भूमि आयोग की सिफारिश लागू करके ही सरकार हासिल कर गरीबों में बंटवारा कर सकती है. अन्यथा वर्तमान भूमि सुधार कानून के छिद्रों का इस्तेमाल कर भूमि चोर अपनी जमीन बचाते रहेंगे. पूर्वी चंपारण में लगभग 1 लाख एकड़ जमीन है और बेतिया महाराज की 3.5 लाख एकड़ जमीन का तो कोई अता-पता ही नहीं है.


चंपारण में चीनी मिलों द्वारा गन्ना किसान-मजदूरों की लूट जारी है. चीनी मिलों के फार्म मे दादनी प्रथा के जरिए बंधुआ मजदूर बनाकर 60 रु. (न्यूनतम मजदूरी का घोषित रेट 197 रु. है) में 10-12 घंटे महिलाओं-बच्चों को खटाया जा रहा है. रामनगर और बगहा-2 प्रखंड के सैकड़ों गांवों में मजदूरी देने की हटही प्रथा कायम है.


आज जब चंपारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है, तब मजूदरों-किसानों के भूमि और अन्य अधिकारोंको पूरा करने के बदले नीतीश सरकार पूरे बिहार की तरह चंपारण में भी गरीबों को जमीन से बेदखल कर रही है. अभी गांधी जी के भितहरवा आश्रम के पूरब के गांव पिपरा में अनुपस्थित जमींदार सैयद अब्दुल बारी की जमीन पर बसे परिवारों को उजाड़ने का काम चल रहा है. सेमरी-डुमरी में जयनाथ मांझी समेत कई गरीबों के घरों को उजाड़ दिया गया. ये घटनाएं शिकारपुर इस्टेट के जमींदार विनय वर्मा के इशारे पर हो रहा है. इन जमींदारों को नरकटियागंज के कांग्रेस विधायक का संरक्षण हासिल है. दोनों मामले में जिला प्रशासन ही जमींदारी कानून चला रहा है. इसकी जांच के लिए जानेवाले भाकपा (माले) राज्य सचिव के कार्यक्रम को जिला प्रशासन द्वारा शिकारपुर इस्टेट के कहने पर रोक दिया गया. सहोदरा थाने की उपस्थिति में इंद्रजीत कुशवाहा (जो केरल में मजदूरी का काम करते हैं) की पत्नी लालमति देवी, पतोहू, बेटी पर 22-23 मार्च को गुंडों द्वारा हमला किया गया. सेमरी-डुमरी से लेकर जंगल तक की दोनों ओर की जमीन को जमींदारों ने कब्जा कर रखा है, लेकिन उसी स्थान पर 57 डिसमिल जमीन पर बसे गरीबों को उजाड़ा जा रहा है.


इस्टेटों के कब्जे वाली लाखों एकड़ सीलिंग की जमीन को कोर्ट-कचहरी में उलझा दिया गया है. कोर्ट में इन जमीनों को बेनामी साबित करवाकर भूस्वामी फिर से रजिस्ट्री करवा रहे हैं. चिउंटहा (मैनाटांड़द्ध में यूपी के भूस्वामी के फर्जी नाम वाली जमीन को तो सरकार गरीबों में बांट नहीं रही है, लेकिन जो गरीब उस जमीन पर बसे हैं, उन्हें उजाड़ने में जरूर लगी है. ध्मौटा की गैरमजरूआ जमीन पर सरकार ने पर्चा दिया था. आज उस जमीन को रामनगर राजा की जमीन बता दी गयी और प्रशासन कान में तेल डाले हुए है. महागठबंध्न सरकार के मंत्री के संरक्षण में फर्जी तरीके से जमीन की रजिस्ट्री हो रही है. कोर्ट के फर्जी ऑर्डर का हवाला देकर जिला प्रशासन गरीबों को बेदखल कर रहा है.


चीनी मिलों के पास हजारों एकड़ जमीन है. रामनगर के गवन्द्रा फार्म की 4500 एकड़ जमीन को डीएम ने अतिरिक्त जमीन घोषित किया है. इस जमीन के बंटवारे के लिए गरीबों ने सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी लेकिन अभी तक यह जमीन बांटी नहीं जा सकी है. फार्म में मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी तक नहीं मिलती. बिहार सरकार को चीनी मिलों को हजारों एकड़ जमीन देने में कोई हिचक नहीं होती, लेकिन गरीबों केा जमीन खाली करने का नोटिस दिया जा रहा है.


पश्चिम चंपारण में एक और प्रोजेक्ट है, जिसकी आड़ में आदिवासियों को बेदखल करने की लगातार साजिशें रची जाती हैं. वाल्मिकीटाइगर प्रोजेक्ट की आड़ में कई गांवों के आदिवासियों का विस्थापन का सवाल लंबे समय से बना हुआ है, जिसको लेकर पार्टी ने कई लड़ाइयां भी लड़ी हैं. वन अधिकार कानून 2006 जंगल के भीतर निवास करने वाली आबादी के परंपरागत अधिकारोंको मान्यता प्रदान करती है, लेकिन सरकार खुद के कानून का लगातार उल्लंघन कर रही है और आदिवासियों को उनके परंपरगात अधिकारोंसे बेदखल कर रही है.


इस तरह, पिछले वर्षों में चंपारण के गरीबों ने जो कुछ भी लड़ कर हासिल किया था, आज उसपर ही सरकार, इस्टेट और जमींदारों द्वारा तरह-तरह से हमला किया जा रहा है और गरीबों के कब्जे वाली जमीन को फिर से छीन लेने की कोशिश की जा रही है. भूमि अधिकार सत्याग्रह के दौरान पार्टी, खेग्रामस व अखिल भारतीय किसान महासभा ने संयुक्त रूप से गरीबों के अधिकारोंपर हमले के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया है. इस्टेटों के कब्जे वाली लाखो एकड़ जमीन का गरीबों में बंटवारा, पर्चा प्राप्त भूमिहीनों को दखल-कब्जा, बेनामी/फर्जी जमीन का गरीबों में बंटवारा, गवन्द्रा फार्म सहित सभी चीनी मिलों की कब्जे वाली हजारो एकड़ जमीन का बंटवारा, वन अधिकार कानून 2006 लागू करने आदि सवालों पर दलित गरीबों, मजदूरों व किसानों का जबरदस्त आंदोलन खड़ा करके ही सरकार को बाध्य किया जा सकता है और उनके द्वारा चंपारण सत्याग्रह को मजाक बनाए जाने का भी पर्दाफाश किया जा सकता है.